गुरु मन्त्र दीक्षा के 32 लाभ:-
भगवान का मन्त्र जपने से शक्ति मिलती है..लेकिन वो ही मन्त्र किसी गुरू द्वारा मंत्र दीक्षा से मिलता है तो वो आप को ब्रम्हाण्डीय शक्ति से जोड़ता है…आप की प्रार्थना सफल होती है…
गुरु मन्त्र के जप से सभी जन्मो के पाप नाश होंगे..
जप = ज+प
‘ज’ का मतलब जन्म मरण का नाश और
‘प’ का मतलब पाप का नाश
= इसी का नाम जप है.
“गं गं ” बिज मन्त्र है.. अनियमित मासिक के लिए राम बाण इलाज है.. भाईयो को पानी पड़ने की बीमारी, धातु के समन्धि बीमारी है तो “घं घं ” से रक्षण होता है
मंत्र दीक्षा से 33 प्रकार के फायदे होते है…
1) भगवान के नाम रस मे प्रीति बढ़ेगी.. चिंता, दुःख मिटते , पाप नाश होते तो भगवान मे आनंद आने लगता है , सुमिरन ध्यान मे आनंद आने लगता है..प्रीति का रस प्रगट होता जायेगा..
2) मन की चंचलता मिटने लगेगी, मन्त्र जाप से अध्यात्मिक तरंगे उत्त्पन्न होती है..इससे चित्त में आनंद और शांती व्याप जाती है..चित्त की चंचलता मिटती , मनोराज मिटते, फालतू विचारो का शमन होता…
चित्त को शांती मिलती, समाधान मिलता.
3) परमात्मा की प्रेरणा होने लगेगी, इष्ट देव सपने मे आकर दर्शन देंगे या और किसी प्रकार से आप को मार्गदर्शन मिलेगा.. …बुध्दी की प्रसादी मिलती, अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा समझने की सूझ बुझ मिलती..सही गलत का निर्णय करने में अंतर्यामी परमात्मा की प्रेरणा मिलती तो व्यावहारिक ज्ञान में सूझ बुझ आती… फिर तो राजे महाराजाओं के सुख को भी तुच्छ मानते..
4) नाम का, धन का अहंकार और घमंड नहीं होगा…अहंकार गलने लगता है
5) मन और बुध्दी निर्मल होती है ..बुध्दी मे शुध्द प्रकाश और प्रेरणा होगी की क्या करना है, कब और कैसे करना है… मन बुध्दी की पुष्टि होती जाती.. …गुरू मन्त्र का जप करने से नीरसता दूर होगी और आस्था बढ़ेगी..बुध्दी में शुद्धि आती..
6) रोग बीमारी से क्षीण नहीं होंगे.. ‘रोग आया तो शरीर मे आया , मैं तो अमर आत्मा हूँ’ ये समझ विकसित होगी..मन्त्र के उच्चारण से हमारे शरीर पर — 5 ज्ञानेन्द्रियां और 5 कर्मेन्द्रियों पर , लीवर और ह्रदय पर ऐसा प्रभाव पड़ता है की रोग कण नाश होते है और रक्त का प्रवाह शुध्द होता है….. .. रोग प्रतिकार की शक्ति बढती..रोगों के कणों को भगाती है ..
7) सुख मे बहोगे नहीं और दुःख से दबोगे नहीं, उनका साधन बनाकर उन्नति करने की बुध्दी विकसित होगी..जप करनेवाला वाला दुखी खिन्न नहीं होता. ..दुःख मिटेंगे, दुःख को उखाड़ फेकने वाले परमानंद की प्राप्ति होगी .. भगवान के नाम मे रस आयेगा तो दुखो की जड़ उखाड़ के फेकनेवाला आनंद आएगा..दुःख नाशिनी शक्ति बढती… भविष्य में दुःख देने वाली परिस्थितियां भी क्षीण होती.. .’सुख स्वपना दुःख बुलबुला , दोनों है मेहमान’ …सुख दुःख आने-जानेवाला है -उस को जाननेवाला ‘मैं’ नित्य हूँ..इस प्रकार सुख दुःख की थपेड़ो से बचकर हम परम आनंद के दाता ईश्वर के रास्ते पहुँचने में सफल हो जाते… ‘सुख दुःख मन को है , मैं उस को देखने वाला हूँ’ ये जान कर सुख दुःख का भी उपयोग कर के सुख दुःख को स्टेप बना लेते है..ईश्वर के रास्ते उन्नत होते जाते….
8 ) गुरु मन्त्र के जप से सभी जन्मो के पाप नाश होंगे..(ज+प = ‘ज’ का मतलब जन्म मरण का नाश और ‘प’ का मतलब पाप का नाश : इसी का नाम जप है.)
पाप मिटने से पुण्यमय भाव बनने लगता है…पाप क्षीण होने लगते…पाप मिटते, पुण्य बढ़ते. .. सुनिश्चय करनेवाली पापनाशिनी शक्ति जागृत होती…पाप वासना मिटती, बेवकूफी मिटती , आप को बेवकुफ बनानेवाला बेवकुफ बनता और आप सजाग हो जाते!
9) घटाकाश और व्यापक परमात्मा के एकत्व का दैवी ज्ञान प्रगट होता है …दिव्य प्रेरणा प्रगट होने लगती…
आत्मा ब्रह्म है , जैसे घड़े का आकाश महा आकाश से जुड़ा है ,एक ही है ,भिन्न नहीं है …ऐसे ही आप का आत्मा उस परमात्मा से जुड़ा हुआ है ..यह ज्ञान होगा..आत्मा ब्रम्ह है ..बुध्दी में चैत्यन्य चिन्मय वासुदेव का प्रसाद है…तो ‘सब में वासुदेव है’… इस प्रकार की दिव्यता का अनुभव होने लगता …भगवान की कथा समझ में आने लगती… संतो के दर्शन से रोमांचित होते… ये ब्रम्ह की खबर है… .
एक कौर चावल को देखा आप ने तो आप को चावल का डेगा देखने की जरुरत नहीं.. चुल्लू भर पानी से सरोवर के पानी की खबर मिलती… एक सूर्य की किरण से सूर्य की खबर मिलती … ऐसे एक हमारे आत्मा की खबर मिलती तो पुरे ब्रम्ह की खबर मिलती..
84 लाख जन्मो के संस्कारो पे पैर देकर परम आनंद का अनुभव पाने में सफल होते..
10) आप का आत्म विश्वास बढेगा, चिंता –निश्चिन्तता मे बदलती है..विवेक विकसित होता, अ-विवेकी निर्णय दूर होते.
नाम जपने वाले के निर्णय और निगुरे के निर्णय देखो तो फरक पता चल जायेगा..
नाम जप करते तो शरीर को सताना सब छुट जाता है ..छोड़ना नहीं पड़ता, छुट जाता ही..और औचित्य बढ़ता और अनौचित्य छुट जाता है ..
15) आप का विवेक जागता है , औचित्य से परम औचित्य वासुदेव का प्रसाद मिलता है ..की सुख और दुःख में उलझते नहीं.. न चाहते हुए भी दुःख की समस्या आई तो ये काल -चक्र है, ये समझ आती है …… जिस के सलाह कार साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण हो; गांडीव धनुष्यधारी अर्जुन , गदाधर भीम जैसे पुत्र थे ऐसे कुंता महारानी को भी कलह के दुःख कष्ट के दिनों से गुजरना पड़ता है… न चाहते हुए भी दुःख के दिन आये और नहीं मांगे तो भी सुख के लहराते दिन आये तो जीवन सुख–दुःख का ताना-बुना है… दोनों मे उलझना नहीं, आगे बढना है … दोनों का भोगी नहीं, योगी बनना है – ये गुरु सेवा से मति मिलती है..
ये मति सभी डिग्रियों से भी नहीं मिलती..
इसलिए जो दीक्षा देते, दीक्षा दिलवाते उन का बड़ा भारी उपकार मानना चाहिए …
11) भय नाश होगा..
भयनाशन दुरमति हरण कलि मे हरी को नाम l
निशि दिन नानक जो जपे सफल होवहि सब काम ll
कलियुग मे हरी का नाम ही भय का नाश करनेवाला है..मन्त्र जाप से भय – निर्भयता में , घृणा – प्रेम में और काम राम में बदलने लगता है..
12) शोक ख़तम होगा ..जैसे गाली देते तो द्वेष , घृणा और अशांति पैदा होती है , वैसे मन्त्र से आनंद, माधुर्य , उत्साह और शांती प्रगट होती है.. तो शोक नाश होता है..
13) समानाधिकरण की वृत्ति विकसित होती…समता बढ़ने लगती ..
समता बढती तो दुःख-सुख, लाभ-हानि ये आने जाने वाली ऐसा अनुभव होता…..
वैभव, यश-अपयश, प्रलोभन में सिकुड़ता नहीं..
इतना जय जयकार तो देवता के भाग्य में भी नहीं होता… पापी का मुर्दा जलता देखता तो उस की ऊँची गति कर देता… फिर भी अभिमान नहीं है.. इंद्र भी ऐसे महापुरुष के सामने अपने को कंगले मानते ऐसे घमंड नहीं करता…. कितने आंधी तुफान आते फिर भी चित्त को चोट नहीं करती.. कितनी भारी उपलब्धि है… गुरूकृपा है !
14) संसारी प्रेम शोषित करता है, भगवान से प्रेम पोषित करेगा…. धारणा शक्ति बढती है,सूझ बुझ बढती है..संसारी वासना को क्षीण कर देगा..
15) स्वास्थ्य , दीर्घायु की प्राप्ति होती है…..आयुष्य और आरोग्य मिलता है….
16) जीवन सहज हो जायेगा..कोई वाहवाही करेगा तो भी गर्व से फुलोगे नहीं और कोई निंदा करेगा तो भी पिचोगे नहीं….
गुरू मंत्र नाम जपने वाला सहेज जीवन का अधिकारी हो जाता है , आनंद प्रसन्न-ता स्वभाव में आती है
17) क्षमा शक्ति बढती है, दीक्षा लेने के बाद क्रोध कम हो जाता है..
18) शौर्य शक्ति बढती है….मन्त्र जप से बल और विजय प्राप्त होती है..
ये 18 प्रकार के और 15 प्रकार के और फायदे भी होते ही है..मन्त्र जाप सदा चलता रहे…कामधेनु मिल गयी तो इच्छा पुर्ती करेगी , मनोरथ पूरा होगा..लेकिन मन्त्र जप से इतनी ऊँची अवस्था में आ जाओगे की कोई इच्छा ही नहीं रहेगी ऐसा परमात्म वैभव की प्रगट होगा..बाहर का वैभव कितना भी मिल गया तो छूटेगा, लेकिन परमात्म वैभव कभी नहीं छूटनेवाला वैभव है…श्रीकृष्ण भगवान इसिलए साधू संतो के पत्तले उठाते और उनके चरण धोते..इतनी महानता आती है..
मन्त्र दीक्षा से तीव्र शक्तियां विकसित होती है…शरीर से पवित्र किरण निकलेगी..
19) मन्त्र जापक मे इतनी शक्तियां विकसित होती है की आगे घटित होने वाले घटनाओ की आहट पहेले ही पता चल जाती है.
20) व्याधी नाशिनी शक्ति जागृत होती है..खुद के रोग व्याधी दूर करते ही है ,लेकिन दूसरो पर भी नजर डालेंगे या मन्त्र जाप से पानी देंगे तो उनकी व्याधियां मिटेंगी.
21) दुःख-हारी शक्ति आती है..नारद जी भक्ति की नजर डालते तो लोग ठीक हो जाते..उनके दुःख दूर हो जाते..वो तो उस युग की बात थी ..लेकिन इस कलियुग मे भी कलि का प्रभाव कम होगा ऐसी दुःख- हारी शक्ति का विकास होगा..
22) पाप नाशिनी शक्ति का विकास होगा..कोई पापी की अगर मौत होती तो उसे मौत के बाद नारकीय जीवन मिलता है, लेकिन आप के सामने अगर उसकी मौत हुयी तो वो नरक मे नहीं जायेगा इतनी आप में शक्ति विकसित होगी..एक आदमी का एक्सिडेंट हुआ था, मेरे मित्र संत लालजी महाराज का रिश्तेदार था, मौत के दिन गिन रहा था …तो सभी किये हुए पाप याद आने लगे, पश्चाताप होने लगा…तो दुसरे महाराज ने उनपर कृपा की..बाद में वो आदमी ठीक हो गया और कई साल बाद मारा…उसको मरते समय संत महाराज के दर्शन हो गए..
दूसरे के मन की चंचलता मिटाने की शक्ति विकसित होगी…काले कोट देखेंगे तो कोर्ट- कचेरी याद आती है , वैसे संत को देखेंगे तो प्रभु की याद आती है और मन की चंचलता मिटती है.. व्यक्ति शांत होता है..आप के पास आनेवाले लोगो को भी शांती का अनुभव होगा…
24) प्रारब्ध के कु- अंक मिटते है..
‘मेटत कु-अंक भाल के’ ..भाल माने प्रारब्ध ..नसीब मे कुछ कु-अंक (बुरी घटना) होंगे तो उनका भंजन करनेवाली शक्ति विकसित होती है..
25) शुभ कर्म मे सम्पूरणता……….कार्य को सम्पूर्ण करने की शक्ति का विकास होता है..
गुरु मन्त्र का जप करने से सारे वेद पठन करने का और सारे तीर्थ करने का फल मिलता है. कोई कठिनाई नहीं..जब चाहे तब किया जा सकता है…
मन्त्र जाप मम दृढ़ विश्वास l
पंचम भजम सो बेद प्रकासा l l
गुरु मन्त्र को दृढ़ विश्वास से जपने से वेद का ज्ञान प्रकशित होने लगता है…
27) शास्त्र के अर्थ अपने आप प्रगट होने लगते है ऐसी शक्ति विकसित होती है..
28) साफल्य दायिनी शक्ति का विकास होता है..जो भी कार्य करते तो सफल होता है..
29) आनंद दायिनी शक्ति जागृत होती है…
इसिलए आप लोग कहते है..
गुरूजी तुम तसल्ली न दो,सिर्फ बैठे ही रहो
महेफिल का रंग बदल जाएगा
गिरता हुआ दिल भी संभल जायेगा….केवल आप के दर्शन से भी लोग आनंदित होने लगेंगे..
30) बुध्दी प्रखर होती है..बड़े बड़े ज्ञानी भी इसीलिए सुनते है…
31) सुषुप्त शक्तियां जागृत होने लगती है.
32) ब्रह्म के समान अधिकार की वृत्ति…