12 राशियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी
आज हम 12 राशियों के बारे में चर्चा करते हैं किसी भी राशि को समझने के लिए या किसी के लग्न को समझने के लिए राशियों के बारे में जानकारी होना अति आवश्यक है कौन सी राशि कौन सा गुण कौन सा धर्म कौन से तत्व प्रकट करती है इन सब बारे में हमें जानकारी होना अति आवश्यक होता है जब हम कुंडली विश्लेषण करते हैं तब ठीक तरह से राशि के गुण और दोष को ध्यान में रखते हुए आगे हम जातक के भविष्य के बारे में सटीक भविष्यवाणी कर सकते अगर हमें राशियों के बारे में जानकारी नहीं है या कम है तो भविष्यवाणी करते समय त्रुटि हो सकती आइए हम जानते हैं कौन सी राशि कौन सा गुणधर्म लेकर व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालते हैं )
मेष राशि
यह राशि चर क्रूर पुरुष अग्नि तत्व पूर्व दिशा का स्वामी मस्तक का बोध कराने वाला प्रष्ठोदय और उग्र प्रकृति रक्तवर्ण एवं पाद जल राशि कहलाता है यह पित्त प्राकृतिक कारक है तथा इसका स्वामी मंगल है। सूर्य इसमें उच्च और शनि इसमें नीच होता है इस राशि का प्रकृतिक स्वभाव साहसी अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखने वाला है पहले नवांश में अर्थात 0से 3.20 अंशादि तक अपने प्राकृतिक स्वभाव को विशेष रूप से प्रकट करता है यह राशि पाटल देश का स्वामी है
वृष राशि
यह राशि स्थिर सौम्य एवं स्त्री पृथ्वी तत्व दक्षिण दिशा का स्वामी पृष्ठोदय श्वेवत वर्ण शरीर का मुख्य वायु प्रकृति कारक और अर्धजल राशि कहलाता है इसका स्वामी शुक्र है चंद्रमा इसमें उच्च होता है तथा 4 से 30 अंश तक चंद्रमा मूलत्रिकोण में कहा जाता है राहु इसमें उच्च और केतु नीच होता है इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी समझ बूझ कर काम करने वाला परिश्रमी और सांसारिक कार्य में दक्ष होना है पंचम नवांश अर्थात 131/3 से 162/3अशं अपने स्वभाव को पूर्ण रूप से दिखलाता है कर्नाटक मैसूर आदि देशों का स्वामी है।
मिथुन राशि
द्धिस्वभाव क्रूर पुरुष वायू तत्व पश्चिम दिशा शरीर का अंग बाहु कंधा शौषोर्दय कफ वायु पित्त त्रिदोष विशिष्ट और दुर्वा रगं कारक है इसको निर्जल रास कहते हैं बुध इसका स्वामी है इसका प्राकृतिक स्वभाव विद्याध्ययनी और शिल्पी है अपने नवांश अर्थात 262/3से 30 अंश अपने प्राकृतिक स्वभाव को पूर्ण रूप से दिखलाता है और चेरा देश का स्वामी है।
कर्क राशि
यह राशि सौम्य चर स्त्री जल तत्व उत्तर दिशा अंग में वक्षस्थल पृष्ठोदय और लाली गोराई का कारक कहलाता है यह राशि पूर्ण जल राशि कही जाती है इसका स्वामी चंद्रमा है मंगल इसमें नीचहोता है यह राहु का मूल त्रिकोण है प्रकृति स्वभाव से सांसारिक उन्नति में प्रवृतिवान लज्जा वान कार्य करने में स्थिरता और समयानुयायी का सूचक है यह पहले नवांश तथा 1 से 31/3 अंश तक प्राकृतिक स्वभाव को पूर्ण रूप से प्रकट करता है यह चोला देश का स्वामी कहा जाता है।
सिंह राशि
यह राशि स्थिर क्रूर पुरुष अग्नि तत्व पूर्व दिशा शरीर में हृदय शीर्षोदय पीतवर्ण पित्तप्रकृति परिभ्रमण प्रिय कारक कहलाता है यह निर्जल राशि है तथा सूर्य इसका स्वामी है (1से 20 अंश तक सूर्य का मूल त्रिकोण और शेष स्वग्रह कहलाता है प्राकृतिक स्वभाव मेष के ऐसा है परंतु स्वतंत्रता का प्रेमी और चित्त की उदारता का लक्षण रखता है यह पचवें नवांश में अर्थात 131/3से 162/3 अंश तक अपने प्राकृतिक स्वभाव को पूर्ण रूप से दिखलाता है और पांडयदेश वर्तमान त्रिचनापल्ली मदुरा तंजोर भिजगापटम आदि देशों का स्वामी है।
कन्या राशि
द्विस्वभाव सौम्या स्त्री पृथ्वी तत्व दक्षिण दिशा अंग में पेट शीर्षोदय पाण्डु वर्ण और वायु प्रकृति कारक है यह निर्जल राशि है बुध इसका स्वामी है बुध इसमें 15 अंश तक उच्च 16 से 25 अंश तक मूल त्रिकोण और शेष में स्व्रगही होता है इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन के जैसा है परंतु अपनी उन्नति और मान पर पूर्ण ध्यान रखने के अभिलाषी का सूचक है यह नवें नवमांश अर्थात 262 /3से 30 अंश पर्यंन्त प्राकृतिक स्वभाव को पूर्ण रूप से प्रकट करता है यह केरल देश का (ट्रावनकोर) का स्वामी है।
तुला राशि
चर क्रूर पुरुष वायु तत्व पश्चिम दिशा शरीर में नाभि के नीचे का स्थान फिर से शीर्षोदय त्रिदोष और श्याम वर्ण कारक है यह पाद जल राशि है और इसका स्वामी शुक्र है सूर्य इसमें नीच तथा शनि उच्च होता है इसमें 20 अंश तक शुक्र का मूल त्रिकोण और शेष स्वग्रह का होता है केतु मित्र राशि है इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील ज्ञान प्रिय कार्य संपन्न और राजनीतिज्ञ है यह पहले नवांश में अर्थात 1से31/3 अंश तक पूर्ण रीति से अपने स्वभाव को प्रगट करता है यह कोल्लास देश का स्वामी है
वृश्चिक राशि
स्थिर सौम्य स्त्री जल तत्व उत्तर दिशा शरीर का जन्य्येद्रीय लिंगादि शीर्षोदय श्वेत वर्ण कंचन वर्णऔर कफ प्रकृति कारक कहलाता है इसे अर्ध जल राख कहते हैं मंगल इसका स्वामी है और चंद्रमा का यह नीच स्थान है केतु का इस राशि में उच्च होना भी कहा जाता है और राहु नीच होता है प्राकृतिक स्वभाव से यह दंभी हठी दृढ़ प्रतिज्ञ स्पष्ट वादी और निर्मल चित्त का होता है पंचम नवांश में अर्थात 131/3से 161/3 अंश तक प्राकृतिक स्वभाव की पूर्ण रूप से दिखलाता है मलय देश त्रिचनापल्ली और कोयंम्बटूर का स्वामी है
धनु राशि
द्विस्वभाव क्रूर पुरुष अग्नि तत्व पूर्व दिशा शरीर के पैरों की संधि तथा जंघा पृष्ठोदय कंचन वर्ण और पित्त प्रकृति कारक कहलाता है यह अर्ध जल राशि कही जाती है बृहस्पति इसका स्वामी है 20 अंश तक इस में बृहस्पति का मूल त्रिकोण और शेष स्वक्षेत्र होता है प्राकृतिक स्वभाव से अधिकार प्रिय करुणामय और मर्यादा का इच्छुक होता है नवें नवांश अर्थात 262/3 से 30 अंश पर्यंत अपने प्राकृतिक स्वभाव को पूर्ण रूप से प्रकट करता है यह सैंधव सिंधु देश का स्वामी है
मकर राशि
वर सौम्य में स्त्री पृथ्वी तत्व दक्षिण दिशा शरीर के पैरों की गांठ तथा घुटना पृष्ठोदय वायु प्रकृति और पिंगल वर्ण कारक है यह पूर्ण जलराशि कही जाती है शनि इसका स्वामी बृहस्पति इसमें नीच और केतु मूल त्रिकोण में होता है स्वभावतः उच्च पद अभिलाषी होता है यह पहले नवांश में प्राकृतिक स्वभाव को पूर्ण रूप से दिखलाता है यह उत्तर पंचाल युक्त प्रदेश का मध्य भाग देश का स्वामी है।
कुंभ राशि
स्थिर क्रूर पुरुष वायुतत्त पश्चिम दिशा शरीर की फिल्ली शीर्षोदय और विचित्र वर्ण जल राशि तथा त्रिदोष कारक है यह अर्ध जल राशि है शनि इसका स्वामी है इसमें 20 अंश तक शनि का मूल त्रिकोण और शेष स्वक्षेत्र होता है प्राकृतिक स्वभाव से विचार शील शांति चित्त से नई बातें पैदा करने वाला और धमा्रूढं होता है पांचवें नवांश अर्थात131/3से 182/3 अंश तक अपने प्राकृतिक स्वभाव को पूर्णरूपेण दिखलाता है यह यवन देश कश्मीर से काबुल तक का स्वामी है
मीन राशि
द्विस्वभाव सौम्य स्त्री जल तत्व उत्तर दिशा शरीर के अंग का पैर और सुप्ति उभयोदय कफ प्रकृति और पिंगलवर्ण कारक है यह पूर्ण जलराशि कही जाती है बृहस्पति का स्वामी तथा बुध इसमें नीच होता है प्राकृतिक स्वभाव से उत्तम स्वभाव वाला दानी और कोमल चित्त का होता है नवम नवाशं अर्थात 262/3 से 30 अंश तक अपने स्वभाव को पूर्ण रूप से दिखलाता है कोमल देश का स्वामी है प्राचीन काल में संयुक्त प्रदेश के पूर्व भाग को कौशल देश कहा जाता था जिसकी राजधानी अयोध्या थी